Sunday, 19 February 2012
Monday, 13 February 2012
SHREE GAJANAN MAHARAJ PRAKAT DIN......!!
:~: SHREE GAJANAN MAHARAJ PRAKAT DIN :~:
|| SHREE GAJANAN | JAY GAJANAN ||
Shree Gajanan Maharaj Prakat-Din ki Aap Sabhi ko Shubh-Kamanayein.
May Shree Gajanan Maharaj Bless all of You and Your Families Also.
May All Your wishes comes TRUE by the Grace of Our Beloved Shree GAJANAN
|| SHREE GAJANAN | JAY GAJANAN ||
|| GAN GAN GANAT BOTE ||
|| SHREE GAJANAN | JAY GAJANAN ||
Shree Gajanan Maharaj Prakat-Din ki Aap Sabhi ko Shubh-Kamanayein.
May Shree Gajanan Maharaj Bless all of You and Your Families Also.
May All Your wishes comes TRUE by the Grace of Our Beloved Shree GAJANAN
|| SHREE GAJANAN | JAY GAJANAN ||
|| GAN GAN GANAT BOTE ||
Wednesday, 8 February 2012
परिवार की खुशी और तरक्की चाहते हैं तो यह जरूर पढ़ें...
परिवार होता क्या है? ऐसे लोगों का समूह जो भौतिक और मानसिक स्तर पर एक-दूसरे से प्रगाढ़ता से जुड़ा हो। जिसके सभी सदस्य अपना फर्ज पूरी ईमानदारी से करते हुए उदारता पूर्वक एक-दूसरे के लिये त्याग और सहयोग करते हैं। कोई भी परिवार संगठित, विकसित और उन्नतिशील तभी हो सकता है जबकि उसका प्रत्येक सदस्य अपने कर्तव्य को अपना धर्म मानकर पूरी निष्ठा और गहराई से पालन करे।
परिवार की खुशहाली और समृद्धि तभी संभव है जबकि परिवार का कोई भी सदस्य स्वार्थी, विलासी और दुर्गुणी न हो। यदि परिवार में धर्म-कर्तव्यों के प्रति पूरी आस्था और समर्पण होगा तो वे अच्छी तरह से समझ पाएंगे कि स्वार्थ की बजाय स्नेह-सहयोग का माहौल ही फायदेमंद है। किसी भी परिवार में अलगाव, बिखराव या मन-मुटाव तभी पैदा होता है जबकि सदस्यों में अपने कर्तव्य की बजाय अधिकार को पाने की अधिक जल्दी होती है।
यदि कर्तव्य और फर्ज को गहराई से समझकर इनके बीच संतुलन साध लिया जाए तो कोई भी परिवार टूटने और बिखरने से बच सकता है। यानि जिस परिवार में अधिकारों से पहले कर्तव्यों की फिक्र की जाती है, वहीं पर स्नेह, सहयोग और सद्भावना कायम रह पाती है। जहां पर इस तरह की सुलझी हुई सद्बुद्धि का माहौल होगा वहीं पर शुख-संपत्ति से भरा-पूरा राम परिवार जैसा वातावरण होगा।
महाभारत में पांडवों का परिवार देखिए। मां कुंती और पांचों भाई। मां ने पहले अपने कर्तव्य निभाए। अपनी सौतन माद्री की दोनों संतानों नकुल और सहदेव को भी अपने बच्चों जैसा ही प्रेम और परवरिश दी। संस्कार दिए। सभी बेटे भी ऐसे ही हैं। मां के मुंह से निकली हर बात को पूरा करना, बड़े भाई के प्रति आदर, हर भाई को अपने कर्तव्य का भलीभांति ज्ञान था। किसे क्या करना है जिम्मेदारी तय थी। तभी पांडव जहां भी रहे, सुखी रहे। जिन परिवारों में ऐसा समर्पण नहीं होता, वहां अक्सर वैमनस्यता, अलगाव और बिखराव की स्थिति पैदा हो जाती है।
Source: Blog
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